Priyanka Verma

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लेखनी प्रतियोगिता - ख्वाहिशें अनकही

ख्वाहिशें अनकही।।



बहुत थीं, बहुत हैं,

और शायद,

बहुत सी, बची भी रह जाएंगी,

ख्वाहिशें अनकही,

कभी, किसी मोड़ पर,

इनके पूरा होने की आस लिए,

जुड़ती चली जाएगी,

नई उम्मीदों

की कड़ी से कड़ी,

ख्वाहिशों का क्या है,

एक पूरी हुई, तो दिल,

दौड़ पड़ा, दूसरी के पीछे,

इस दौड़ में,

यूं ही गुजरती जाएगी,

इस जिंदगी की घड़ी।।


प्रियंका वर्मा
18/8/23

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2 Comments

बेहतरीन

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